वांछित मन्त्र चुनें

त्वे पि॑तो म॒हानां॑ दे॒वानां॒ मनो॑ हि॒तम्। अका॑रि॒ चारु॑ के॒तुना॒ तवाहि॒मव॑सावधीत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tve pito mahānāṁ devānām mano hitam | akāri cāru ketunā tavāhim avasāvadhīt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वे। पि॒तो॒ इति॑। म॒हाना॑म्। दे॒वाना॑म्। मनः॑। हि॒तम्। अका॑रि। चारु॑। के॒तुना॑। तव॑। अहि॑म्। अव॑सा। अ॒व॒धी॒त् ॥ १.१८७.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:187» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पितो) अन्नव्यापी पालना करनेवाले ईश्वर ! (तव) जिस आपकी (अवसा) रक्षा आदि से सूर्य (अहिम) मेघ को (अवधीत्) हन्ता है उन आपके (केतुना) विज्ञान से जो (चारु) श्रेष्ठतर (अकारि) किया जाता है वह (महानाम्) महात्मा पूज्य (देवानाम्) विद्वानों का (मनः) मन (त्वे) आप में (हितम्) धरा है वा प्रसन्न है ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - यदि अन्न भोजन न किया जाय तो किसी का मन आनन्दित न हो क्योंकि मन अन्नमय है। इस कारण जिसकी उत्पत्ति के लिये मेघ निमित्त है, उस अन्न को सुन्दरता से बनाकर भोजन करना चाहिये ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

पितो यस्यान्नव्यापिनस्तवावसा सूर्योऽहिमवधीत् तस्य तव केतुना यच्चार्वकारि तन्महानां देवानां मनस्त्वे हितमस्ति ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वे) त्वयि (पितो) अन्नव्यापिन् पालकेश्वर (महानाम्) महतां पूज्यानाम् (देवानाम्) विदुषाम् (मनः) (हितम्) धृतं प्रसन्नं वा (अकारि) क्रियते (चारु) श्रेष्ठतरम् (केतुना) विज्ञानेन (तव) तस्य। अत्र व्यत्ययः। (अहिम्) मेघम् (अवसा) (अवधीत्) हन्ति ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - यद्यन्नं न भुज्येत तर्हि कस्यापि मनो न हृष्येत मनसोऽन्नमयत्वात् तस्माद्यस्योत्पत्तये मेघो निमित्तमस्ति तदन्नं सुष्ठु संस्कृत्य भोक्तव्यम् ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर अन्न न खाल्ले तर कुणाचेही मन आनंदी राहणार नाही. कारण मन अन्नमय आहे. ज्याच्या उत्पत्तीस मेघ कारणीभूत आहेत ते अन्न चांगल्या प्रकारे संस्कारित करून खावे. ॥ ६ ॥